जब सैमवर्धन मोथेर्सन इंटरनेशनल लिमिटेड ने 27 मार्च 2025 को देर शाम अपनी टैरिफ स्पष्टीकरण जारी किया, तो बाजार ने तुरंत प्रतिक्रिया दे दी। इस घोषणा के बाद, कंपनी के शेयर डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा लगाए गए 25% अतिरिक्त टैरिफ के संभावित असर को लेकर 3.99% बढ़कर ₹137.18 पर पहुँच गए। यह उछाल इस बात को दर्शाता है कि निवेशकों को टैरिफ से जुड़े जोखिमों पर बहुत सतर्कता थी, पर कंपनी के आश्वासन ने भरोसा फिर से जगा दिया।
घोषणा एवं बाजार प्रतिक्रिया
सैमवर्धन मोथेर्सन ने बताया कि उसके कुल राजस्व का लगभग 20% अमेरिकी बाजार से आता है — जर्मनी के बाद दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता। कंपनी ने कहा कि अधिकांश यूएस‑ग्राहकों को सप्लाई किए जाने वाले उत्पाद या तो भारत में ही निर्मित हैं या संयुक्त राज्य अमेरिका‑मेक्सिको‑कनाडा एग्रीमेंट (USMCA) के अंतर्गत आते हैं, जिससे नए टैरिफ का असर कम होगा। हालांकि, कंपनी ने स्वीकार किया कि भविष्य में टैरिफ में बदलाव, उत्पाद वर्गीकरण और भौगोलिक कवरेज जैसे कारकों से असर बदल सकता है।
टैरिफ का कंपनी पर प्रभाव
अगस्त 6, 2025 को अमेरिका ने भारतीय आयातों पर कुल 50% टैरिफ (पहले 25% + अतिरिक्त 25%) लागू कर दिया था, जिससे ऑटो एंक्सिलरी हिस्सों की कीमतें तात्कालिक रूप से ऊपर गईं। इस पहले हंगाम में सैमवर्धन मोथेर्सन के शेयर 2.62% गिरकर ₹92.85 पर बंद हुए थे। लेकिन Q1 FY26 (अप्रैल‑जून 2025) की वित्तीय रिपोर्ट में कंपनी ने बताया कि यूएस को निर्यात $10 मिलियन से कम रहे, जबकि कुल राजस्व ₹30,212 करोड़ तक बढ़ा, हालांकि EBITDA मार्जिन 9.6% से घटकर 8.2% रह गया।
उद्योग विशेषज्ञों की राय
श्रद्धा सूरी मारवाह, ऑटोमोबाइल कॉम्पोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ACMA) की अध्यक्ष, ने कहा: "उच्च टैरिफ भारतीय निर्यातकों के लिए अल्पकालिक चुनौती पेश करता है, पर यह हमें प्रतिस्पर्धा बढ़ाने, मूल्यवृद्धि करने और नए बाजारों की तलाश करने की जरूरत भी दिखाता है।"
सौमेन मंडल, काउंटरपॉइंट रिसर्च के वरिष्ठ विश्लेषक, ने नोट किया: "बाजार में टैरिफ का असर मुख्यतः घटक निर्माताओं पर पड़ेगा, जबकि अंतिम वाहन निर्माताओं पर प्रत्यक्ष प्रभाव न्यूनतम रहेगा क्योंकि यूएस को निर्यात की मात्रा बहुत कम है।"
साथी कंपनियों की स्थिति
टैरिफ के बाद कई ऑटो सप्लाई चेन खिलाड़ी तनाव में दिखे। भारत फोर्ज के यूएस राजस्व का 20% से अधिक हिस्सा आता है, इसलिए वह सबसे अधिक संवेदनशील है। इसी तरह रामकृष्णा फोर्जिंग्स के यूएस ऑपरेशन्स कुल राजस्व का 30% से अधिक देते हैं, जबकि बालकृष्णा इंडस्ट्रीज़ को यूएस‑आधारित कृषि‑निर्माण ग्राहकों से लगभग 15% मिलते हैं। इन कंपनियों ने भी वैकल्पिक सप्लाई चैन और लागत‑पास‑थ्रू मॉडल पर काम शुरू किया है।
आगे की संभावनाएँ
सैमवर्धन मोथेर्सन का प्रबंधन अभी भी स्थिति को मॉनिटर कर रहा है। कंपनी ने बताया कि जहाँ कुछ कॉन्ट्रैक्ट एक्स‑वर्क्स (ex-works) पर हैं, वहाँ ग्राहक शिपिंग और आयात लागत खुद उठाते हैं, वहीं जहाँ नहीं है, वहाँ वैकल्पिक स्रोतों की तलाश की जा रही है। गैर‑USMCA मानकों वाले उत्पादों के लिए ग्राहक संग बातचीत चल रही है, लेकिन इससे लाभ को पूरी तरह स्थानांतरित करने में समय लग सकता है।
- शेयर बढ़ोतरी: 3.99% (₹137.18 तक)
- US‑टैरिफ दर: 25% अतिरिक्त, कुल 50% (अगस्त 2025)
- USMCA‑अनुपालन: अधिकांश उत्पाद
- Q1 FY26 राजस्व: ₹30,212 करोड़ (+5%)
- EBITDA मार्जिन: 8.2% (घटाव)
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
सैमवर्धन मोथेर्सन के शेयरों में बढ़ोतरी का मुख्य कारण क्या है?
कंपनी की घोषणा कि अधिकांश यूएस‑सम्बंधित उत्पाद USMCA‑अनुपालन हैं और टैरिफ का वित्तीय प्रदर्शन पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा, ने निवेशकों के भरोसे को फिर से बनाये रखा, जिससे शेयर 4% तक उछाल दिखा।
डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा लगाए गए टैरिफ का भारतीय ऑटो घटकों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
टैरिफ मुख्यतः उन घटकों पर असर डालेगा जो USMCA मानकों को नहीं मानते और सीधे भारत से आयात होते हैं। निर्माताओं को वैकल्पिक आपूर्ति स्रोत या लागत‑पार‑थ्रू मॉडल अपनाने की जरूरत पड़ेगी।
क्या टैरिफ का सैमवर्धन मोथेर्सन की यूरोपीय बिक्री पर असर पड़ेगा?
फिलहाल यूएस‑टैरिफ का प्रभाव यूरोप के लिए प्रत्यक्ष नहीं है, पर कंपनी ने बताया कि यूरोप में मौजूदा सख्त विनियम और मुद्रा‑अस्थिरता पहले से ही मार्जिन को दबा रहे हैं, इसलिए टैरिफ का अप्रत्यक्ष असर बढ़ सकता है।
उद्योग विशेषज्ञ टैरिफ के दीर्घकालिक असर को कैसे देखते हैं?
सौमेन मंडल और अन्य विश्लेषकों का मानना है कि शुरुआती शॉक के बाद कंपनियां सप्लाई चेन को री‑लॉजिक करेंगे, जिससे दीर्घकाल में लागत‑विस्तार की सम्भावना घटेगी, पर छोटे निर्माताओं को नया बाजार खोजने में चुनौती का सामना करना पड़ेगा।
आगामी महीनों में सैमवर्धन मोथेर्सन के शेयरों पर क्या जोखिम रहेंगे?
यदि यूएस‑टैरिफ में आगे बदलाव या अतिरिक्त उत्पाद वर्गीकरण शामिल हो जाता है, तो कंपनी को लागत‑पार‑थ्रू पर फिर से चर्चा करनी पड़ेगी, जिससे शेयर में अस्थिरता बढ़ सकती है। साथ ही यूरोपीय बाजार की मौजूदा चुनौतियां भी ध्यान में रखनी होंगी।