सुल्तानपुर. चुनाव की तिथि जैसे-जैसे नज़दीक आ रही है वैसे-वैसे मुस्लिम बाहुल्य इसौली विधानसभा का सियासी पारा चढ़ता जा रहा है. मौजूदा स्थित में सपा छोड़ सभी प्रमुख पार्टियों का सीधा मुकाबला पहली बार रालोद से होता नज़र आ रहा है. गुज़रे 2012 के विधानसभा चुनाव में इस मुस्लिम बाहुल्य सीट के मतदाताओं ने सपा द्वारा उतारे गए कन्डिडेट का जमकर विरोध किया था. लेकिन चुनावी जनसभाओ में आए अखिलेश यादव, शिवपाल यादव और आज़म खान के आश्वासन के बाद मतदाताओं ने इन बड़े नेताओं की ज़बान की लाज रखी और यहां से पार्टी उम्मीदवार को जीताकर भेजा.
लेकिन पहले से ही अपने रूखे स्वभाव और बेलगाम जुबान से चर्चित सपा विधायक पद पाते ही बौखला उठे. नतीजा ये रहा की 5 साल पहले जिन अपनों ने बगैर किसी स्वार्थ के उन्हें विधायक बनाया उन्हीं अपनों को विधायक बनने के बाद वो जूते की नोक पर रखते रहे. जिसका खामियाजा उनको अब भुगतना पड़ रहा है.
पार्टी के प्रति निष्ठावान कार्यकर्ता और पार्टी के ब्लैन्ड स्पोटर्स ने इस चुनाव में एक बार फिर सपा द्वारा मौजूदा विधायक को उम्मीदवार बनाए जानें का यहां से लेकर खुलकर विरोध किया. लेकिन कद्दावर सपा नेता के दबाव के आगे सपा नेतृत्व ने प्रदर्शन कर रहे इन सबकी बात को सुनी अनसुनी कर दिया और अपने फैसले को बरकरार रखा. ऐसे में यहां के अधिकाँश तर मुस्लिम गाँवों के मतदाताओं का कहना है कि विधायक को हराने और सपा नेतृत्व को सबक सिखाने के लिए वो आम पार्टी ही सही उसके उम्मीदवार को वोट करेंगे पर सपा को किसी हालत में वोट नहीं करेंगे.
उधर सपा विधायक की जीत और उनके वोट बैंक में सेंधमारी करने के लिए MBCI से समाज सेवी शिवकुमार सिंह ने मैदान में उतर कर उनकी जीत में बड़ा रोड़ा लगा दिया है. जबकि कुछ दिनों पूर्व दोनों ही एक दूसरे के अच्छे शुभचिंतक थे. लेकिन गुज़रे रमजान माह में रोजा अफ्तार पार्टी पर हुई रार में विधायक द्वारा समाज सेवी की पत्नी एवं वर्तमान में जिला पंचायत अध्यक्ष ऊषा सिंह के लिए गैर जिम्मेदाराना बयान खटास का कारण बना जो मामला न्यायालय तक जा चुका है. इस मामले में क्षेत्र के लोगो ने विरोध में विधायक का पुतला तक फूंका था. ऐसे में अब शिवकुमार सिंह क्षेत्र में जमकर मेहनत कर रहे हैं और उन्हें लोगों का समर्थन भी मिल रहा है.
इसी क्रम में बता दें कि बीजेपी के ओमप्रकाश पाण्डेय बजरंगी के लिए बीएसपी के डा. शैलेन्द्र त्रिपाठी घातक साबित हो रहे. उसकी बड़ी वजह ये है के बीजेपी उम्मीदवार हाल ही में मैदान में आए है और बीएसपी उम्मीदवार सालों से क्षेत्र में जुटे हैं. इससे उनको जनसमर्थन मिल रहा है. बीएसपी उम्मीदवार का मुख्य मुकाबला रालोद के मज़बूत प्रत्याशी यशभद्र सिंह मोनू से है. उसका कारण रालोद प्रत्याशी का महीनों से इलाके में हर सुख दुख की घड़ी में शामिल होना और मदद के लिए आए फरियादियों की हर सम्भव मदद. वहीं उन्हें अपने स्वर्गीय पिता और पूर्व विधायक भाई के द्वारा बनाई गई राजनैतिक पृष्ठभूमि का भी फाएदा मिल रहा. ऐसे में इसौली में मुख्य मुकाबले में रालोद और बीएसपी है जिसका नतीजा 11मार्च को आएगा.
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