योग की इन अभूतपूर्व और अलौकिक शक्ति को जानने के बाद आप नहीं रह सकेंगे इसके बिना!


जब हम प्राचीन वैदिक ग्रंथ, पुराण आदि पढ़ते हैं हम ऐसे मनुष्यों का वर्णन पाते हैं जिनमें अलौकिक क्षमताओं के साथ साथ अभूतपूर्व शक्ति थी. अद्भुत सौंदर्य और आभा वाली महिलाओं के बारे मे सुनते हैं, जो देवताओं को भी आकर्षित कर लेती थीं. ऐसे प्राणियों की तुलना जब हम आज के मानव से करते हैं तो वे कहानियां हमें अविश्वसनीय और मिथ्या प्रतीत होती हैं इसलिए आज के समय में इनकों ‘मिथक’ शब्द से संबोधित किया जाता है.

इनकों ‘मिथक ‘ समझने के लिए मैं लोगो को दोषी नहीं मानता, क्योंकि वर्तमान समय में एक सामान्य मनुष्य की बुद्धि के लिए इन तथ्यों को सत्य समझ पाना संभव ही नहीं है. अगर हम इसे तार्किक रूप से समझने का प्रयास करें तो अपने दादा व परदादाओं की शारीरिक क्षमताओं का स्मरण करें. उनके शरीर हमारी तुलना में अधिक स्वस्थ थे. हमारे पूर्वजों की त्वचा, बिना किसी कृत्रिम सौंदर्य उपचार के, लंबी आयु तक भी सुन्दर व आकर्षक रहती थी. यहाँ तक कि आधुनिक विज्ञान भी अब हमें बतलाता है कि मानव मस्तिष्क और शरीर समय के साथ साथ सिकुड़ गए हैं.

इसी तरह अगर हम अपने आप को और भी प्राचीन समय में ले जाए तो पाएंगे कि वे ‘मिथक’ कथाएं वास्तव में सत्य थीं और यदि हम आने वाले समय के बारे में सोचें तो उसकी परिकल्पना भी भयावह है.

इसका क्या कारण है? योग साधक होने के नाते तथा लगभग दो दशकों से इसका अध्ययन करने के बाद, मुझे विश्वास है, इसका उत्तर योग में निहित है.

सतयुग से वर्तमान कलयुग तक हम निरंतर सत्य से दूर और असत्य की ओर तथा प्रकाश से दूर अन्धकार की ओर बढ़े चले जा रहे हैं. इस प्रक्रिया को पतंजलि अष्टांग योग की मदद से समझने का प्रयास करते हैं. अष्टांग योग ५००० साल पूर्व दिया गया, आधुनिक इतिहासकारों के अनुसार, यह वो समय था जब मानव गुफाओं में रहते थे और शिकार एवं भोजन संग्रह करते थे तथा वानर इंसान के वंशज थे. उस समय पतंजलि ने हमें योग के आठ अंग दिए- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि.

अधिक गहराई में जाए बिना, हम केवल पांच यमों को ही ले लेते हैं. ५००० वर्ष पूर्व, जब यह माना जाता है की विश्व मे असभ्य जीवों का वास था, पतंजलि सत्य और अहिंसा की शक्ति और छल, जमाखोरी और अत्यधिक यौन के खतरों के बारे में समझा रहे थे. और याद रहे, यम अष्टांग योग का एक आठवा भाग ही है… जाहिर है, स्वास्थ्य, सौंदर्य और तेज के रहस्य इसी में निहित है.

पतंजलि ने सत्य को पहले यम के रूप में निर्धारित किया. जो व्यक्ति सभी परिस्थितियों में सच बोलता है, उसका भय समाप्त हो जाता है. यह भय ही है जो क्रोध, ईर्ष्या, असुरक्षा आदि जैसी नकारात्मक भावनाओं को जन्म देता है, भय न हो तो कोई नकारात्मक भावना भी न हो. शरीर में हमेशा सकारात्मक प्राण का संचार और पाचन शक्ति भी बनी रहे. सत्य का आचरण करने वाले के मुख पर सदैव अलौकिक तेज रहता है. योग की पहली सिद्धि, वाक शक्ति, अर्थात, जो भी आप बोलें वैसा ही हो जाए, सत्य के यम के पालन से प्राप्त होती है.

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