बाबरी विध्वंस के 25वीं बरसी आज, ऐसे एक आदेश से सबको मिली थी रामलला के दर्शन की अनुमति

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आज से 25 साल पहले 6 दिसम्बर 1992 में लाखों की संख्या में जुटे कारसेवकों ने अयोध्या के विवादित ढांचे को ढहा दिया था. तब से लेकर आज तक इसपर पर सियासी घमासान जारी है और अभी तक कोई हल नहीं निकल सका है. हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट ने 8 फ़रवरी से इस मामले की लगातार सुनवाई करने का फैसला किया है. वैसे तो यह लड़ाई अंग्रेजों के समय से ही चला आ रहा है लेकिन लेकिन इस ववाद की चिंगारी देने का काम किया 31 साल पहले फ़ैजाबाद के जिला एवं सत्र न्यायाधीश के एक आदेश ने.

विवादित क्षेत्र में ताला अंग्रेजों के समय से ही लगा हुआ था लेकिन 1 फ़रवरी 1986 को दिए गए फ़ैजाबाद के जिला एवं सत्र न्यायाधीश के आदेश से अंग्रेजों के जमाने से लगे ताले को खोलने का रास्ता साफ हुआ. इस आदेश के बाद ही हिन्दुओं को रामलला विराजमान के दर्शन और पूजन की अनुमति दे दी.

25 जनवरी 1986 को अयोध्या के एक वकील उमेश चंद्र पांडेय ने फैजाबाद के मुंसिफ हरिशंकर द्विवेदी की अदालत में विवादस्पद ढांचे को राम मंदिर बताते हुए उस पर लगे ताले को खोलने के लिए याचिका दिखिल की. उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि राम जन्मभूमि पर पूजा अर्चना करना उनका बुनयादी अधिकार है.

इस अपील पर सुनवाई हुई. उन्होंने अपने अपील में यह दलील दी थी कि मंदिर में ताला लगाने का आदेश पूर्व में जिला प्रशासन ने दिया था, किसी अदालत ने नहीं. 1 फ़रवरी 1986 को जिला एवं सत्र न्यायधीश कृष्ण मोहन पांडेय ने उनकी यह अपील स्वीकार कर ली. इस मामले में जज ने तत्कालीन जिलाधिकारी इंदु कुमार पांडेय और एसएसपी कर्मवीर सिंह को कोर्ट में तलब किया था. दोनों ने कोर्ट को बताया कि ताला खोलने से कानून व्यवस्था बिगड़ने की आशंका नहीं है. कोर्ट ने इस मामले में बाबरी मस्जिद के मुद्दई मोहम्मद हाशिम अंसारी और एक अन्य पक्षकार के तर्कों को भी सुना.

हालांकि राज्य सरकार ने उमेश चंद्र की अपील का विरोध किया. सरकार ने ताला खुलने से कानून व्यवस्था के भंग होने की आशंका जाहिर की. लेकिन कोर्ट ने सरकार की दलील यह कहते हुए ठुकरा दी कि ताला लगाने का आदेश में पूर्व में किसी भी अदालत ने नहीं दिया है. जज ने यह भी कहा कि वे अपना फैसला भी आज ही शाम को सुनाएंगे. शाम 4.15 बजे जज ने ताला खोलने का आदेश दिया. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जनता दर्शन और पूजा के लिए राम जन्मभूमि जा सकती है. यही नहीं राज्य सरकार रामलला के दर्शन पूजन में कोई बाधा उत्पन्न नहीं करेगी. इस फैसले के 40 मिनट बाद ही सिटी मजिस्ट्रेट ने विवादित स्थल पर लगे ताले को खुलवा दिया.

इसके बाद ही इससे जुड़े और लोग सक्रीय हो गये. मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा. वर्षों तक हाईकोर्ट में चली बहस के बाद 10 सितम्बर 2010 को ऐतिहासिक फैसला आया. इस फैसले में तीन जजों की खंडपीठ ने पूरी जमीन को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला सुनाया.

2.77 एकड़ की विवादित जमीन का एक तिहाई हिस्सा हिन्दू महासभा राममंदिर निर्माण के लिए दी गई. एक तिहाई हिस्से को सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया और इतने ही हिस्से को निर्मोही अखाड़े को दे दिया गया. हालांकि इस फैसले से कोई भी पक्ष राजी नहीं हुआ और सभी पक्षों ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.


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