बिल गेट्स को पछाड़ ये बने दुनिया के सबसे आमिर आदमी, सचाई जान आप भी रह जायेंगे दंग…
— July 28, 2017आपने कभी चन्द घंटों के लिए किसी को आमिर बनते सुना है क्या, नहीं न? आप ये सुन कर थोड़े…
मायावती इन दिनों अपने पार्टी को एक जुट करने में लगी हुई है. रविवार को उन्होंने दिल्ली में पार्टी के पदाधिकारियों के साथ मीटिंग की जिसमें अपनी आगे की रणनीति तैयार की. उन्होंने एलान किया कि वह सितंबर से हर महीने की 18 तारीख को मंडल लेवल पर होने वाली रैलियों में शामिल होंगी. उन्होंने यह भी बताया की 18 तारीख को इसलिए चुना है क्योंकि इसी दिन मायावती ने इस्तीफा दिया था.
कहा यह भी जा रहा कि मायावती एक बार फिर से अपना दलित वोट बैंक को एकजुट करना चाह रही हैं. 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव को मायावती अपने पार्टी के पक्ष में बनाने की तैयारी भी कर रही है. एक रिपोर्ट से मिली ख़बर के अनुसार बीते 10 साल में मायावती से करीब 8% दलित अलग हो चुके हैं.
विशेषज्ञों से हुई बातचित के अनुसार, ”मायावती ने काफी सोच समझकर राज्यसभा से इस्तीफा दिया है. 2 साल बाद लोकसभा चुनाव होने हैं और बीते चुनावों में लगातार अपनी राजनीतिक जमीन खोती जा रहीं मायावती के पास इस्तीफा देकर फ्रंट में आकर काम करने के अलावा कोई रास्ता नहीं है.”
– ”जहां एक तरफ उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा देकर एक खास वर्ग को मैसेज भेजा है, वहीं सही टाइम पर यूपी का दौरा करने का एलान किया है. अगर कांशीराम की तरह मायावती भी अपने वोट बैंक के बीच पहुंचकर उन्हें समझाने में कामयाब होती हैं तो 2019 में वे बड़ा फेरबदल कर सकती हैं.”
– ”देखा जाए तो साल दर साल बसपा के दलित वोट प्रतिशत में कमी ही आई है. 2007 के विधानसभा चुनाव में 85 रिजर्व सीटों में से बसपा को 62 पर जीत मिली थी. उस समय पार्टी को दलितों के 30% वोट मिले थे. वहीं, 2012 के चुनाव में वोट प्रतिशत 25.9 तो 2017 में वोट प्रतिशत 23 से 24% तक सिमट गया.”
-विशेषज्ञों का कहना है कि, ”मायावती ने बीजेपी के खिलाफ माहौल तैयार करने के लिए समय तो सही चुना है, लेकिन वे लोगों को कितना कन्विंस कर पाएंगी, ये देखने वाली बात होगी.”
– ”करीब 10 साल से तो मायावती आम आदमी के बीच से गायब हैं. उनकी सिक्युरिटी की मर्जी के बगैर उनसे कोई मिल भी नहीं सकता, लेकिन जिस दलित वर्ग को वह खुद से जोड़ना चाहती हैं, वो दलित वर्ग उन्हें अपने साथ देखना चाहता है.”
– ”आज के दौर में नए युवा दलित चेहरे उभर रहे हैं, जिनका काम करने का अंदाज अलग है. ऐसे में उनसे तालमेल बिठाकर मायावती को दलितों के बीच जाना होगा क्योंकि मायावती ने इस बार के विधानसभा चुनाव में भी 50 से ज्यादा रैलियां की थी. भीड़ भी काफी उमड़ी थी, लेकिन वो वोट में नहीं बदल पाई थी और यही काम करना बसपा चीफ के लिए चुनौती भरा होगा.”
– विशेषज्ञों के मुताबिक, ”अब मायावती को सभी जातियों के बजाए सिर्फ बहुजन पर फोकस करना चाहिए क्योंकि बहुजन बसपा से 2007 के बाद से ही अलग होना शुरू हुए. तब मायावती ने सर्वजन की बात कहनी शुरू की थी.”
– ”हालांकि 2007 से 2012 के बीच मायावती पूर्ण बहुमत से सरकार चला रही थीं, लेकिन दलितों को कुछ खास फायदा नहीं हुआ. आंकड़ों पर नजर डालें तो यूपी में दलितों की आबादी कुल आबादी का 21% है और उनमें करीब 66 उपजातियां हैं जो सामाजिक तौर पर बंटी हुई हैं.”
– ”इन उपजातियों में जाटव/चमार- 56%, पासी- 16%, धोबी, कोरी और बाल्मीकि- 15%, गोंड, धानुक और खटिक- 5% हैं. 9 अति दलित उपजातियों में रावत, बहेलिया खरवार और कोल 5% हैं. बाकी 49 उपजातियां करीब 3% हैं.”
– ”आजमगढ़, आगरा, बिजनौर, सहारनपुर, मुरादाबाद, गोरखपुर, गाजीपुर, सोनभद्र जैसे जिलों में चमार/जाटव की तादाद ज्यादा हैं. वहीं, सीतापुर, रायबरेली, हरदोई, और इलाहाबाद जैसे जिलों में पासी की संख्या ज्यादा है.”
– ”बाकी समूह जैसे धोबी, कोरी और बाल्मीकि कम्युनिटी के लोगों की ज्यादातर आबादी बरेली, सुल्तानपुर और गाजियाबाद में है.”
– ”मायावती को 2012 में रिजर्व 15 सीटें मिली थीं. उन्हें ये सीटें ज्यादातर वेस्ट यूपी में ही मिली थीं, जहां पर जाटव उपजाति ज्यादा है. बसपा चीफ को पासी बाहुल्य क्षेत्र में सब से कम और कोरी बाहुल्य क्षेत्र में बहुत कम सीटें मिलीं.”
– ”पूर्वी और सेंट्रल यूपी चमार उपजाति का असर है. यहां मायावती को बहुत कम सीटें मिली थीं. उन्हें वेस्ट यूपी से 7 और बाकी यूपी से कुल 8 सीटें मिली थीं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, बीते 10 साल में मायावती से लगभग 8% दलित अलग हो चुके हैं.”
अगर बात करे BSP के वोट पर्सेंटेज-सीटों की तो 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा को 85 में से 62 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. वहीं, 2012 के विधानसभा चुनाव में यूपी की 85 रिजर्व सीटों में से बसपा सिर्फ 15 सीटें जीत पाई. इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बसपा के वोट बैंक में सेंधमारी की. हालांकि, जाटव के 68 फीसदी वोट बसपा के साथ गए, लेकिन करीब 45 फीसदी वोटर बीजेपी के साथ आ गए. बसपा को इनका सिर्फ 30 फीसदी वोट ही मिल सका. 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में 86 रिजर्व सीटों में से बसपा सिर्फ 2 सीटें ही जीत पाई.
सभार दैनिक भास्कर
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