मर्दों को कंडोम की झंझट से छुटकारा, अब अपने पार्टनर के साथ 12 महीने उठाइये सेक्स का आनन्द
— January 23, 2018प्यार में जब दो दिल मिलते हैं और जब प्यार एक और मूर्त रूप लेता है शारीरिक संबध बनता है…
न्यूज़ डेस्क: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बीते शुक्रवार साल 2018 का अपना पहला इंटरव्यू दिया. हिंदी चैनल जी न्यूज़ के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस इंटरव्यू में राजनीति, अर्थव्यवस्था, अंतराष्ट्रीय मसले और कूटनीति से लेकर रोजगार तक के मुद्दों पर बात की. इंटरव्यू के दौरान एंकर सुधीर चौधरी ने बीजेपी सरकार द्वारा रोजगार के अवसर पैदा करने के वादे पर सवाल किया तब पीएम ने इसका जवाब बड़ा ही अजीब सा दिया उन्होंने कहा कि अगर इस जी टीवी के बाहर कोई व्यक्ति पकौड़ा बेच रहा है तो क्या वह रोजगार होगा या नहीं? एंकर सुधीर चौधरी ने श्रम मंत्रालय के आंकड़े पेश करते हुए सवाल किया कि क्या सरकार नौकरियां पैदा करने की दिशा में सही रास्ते पर चल रही है या नहीं.
सुधीर चौधरी ने फिर पीएम मोदी से एक करोड़ नौकरियां पैदा करने के वादे को लेकर सवाल पूछा तो, उन्होंने कहा कि ‘हाल ही में एक स्वायत्त संस्था ने ईपीएफ के आंकड़े निकाले हैं और यह आंकड़े गलत नहीं होते, क्योंकि इसमें आधार नंबर होता है, बैंक अकाउंट होता है और पैसा होता है, यह हवाबाजी नहीं होती है. उन्होंने कहा कि इस एक साल में 70 लाख ईपीएफ जुड़े हैं और यह एक स्वायत्त संस्था का आंकड़ा है.
साथ ही नरेन्द्र मोदी ने बताया कि हमारे सरकार ने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना बनाई. जिसके तहत जो भी व्यक्ति रोजगार करना चाहता है, उसे बिना बैंक गारंटी के पैसा दिया जाता है. उन्होंने कहा कि देश को गर्व होना चाहिए कि दस करोड़ लोगों ने मुद्रा योजना का लाभ लिया है और इन सभी लोगों को सरकार बिना किसी गैरंटी के चार लाख करोड़ रुपए का वितरण कर रोजगार चलाने का जरया दे रही है. पीएम ने साथ में यह भी कहा कि कोई व्यक्ति पैसा लेता है, एक दुकान भी चलाता है तो वह खुद तो रोजगार पाता ही है एक दूसरे व्यक्ति को भी रोजगार का अवसर देता है, क्या इसको आप रोजगार नहीं मानेंगे.
एक साथ चुनाव कराने के सवाल पर मोदी ने कहा, देश में हमेशा चुनाव का माहौल रहता है. चुनाव आने पर ‘फेडरल स्ट्रक्चर’ को चोट पहुंचती है. राजनीतिक दलों के बीच तू-तू, मैं-मैं होती है. साल में एक बार उत्सव की तरह चुनाव भी एक निश्चित समय में होने चाहिए. सुरक्षाबलों के लाखों जवान अक्सर चुनाव में लगे रहते हैं. राज्यों के तमाम बड़े अफसरों को ऑब्जर्वर के रूप में दूसरे राज्यों में भेजा जाता है. पोलिंग बूथ पर बड़ी तादाद में कार्यबल जुटे रहते हैं. काफी बड़ी रकम खर्च होती है. अब देश का वोटर समझदार है. वह लोकसभा और विधानसभा चुनाव में फर्क समझता है. इन दोनों चुनावों को साथ-साथ होना चाहिए. इसके एक महीने बाद स्थानीय चुनाव होने चाहिए. सब मिलकर ऐसा सोचेंगे तो यह संभव हो सकता है. एक बार चर्चा शुरू हो तो आगे की राह निकल आएगी.
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