सपा में पिता और बेटे की लड़ाई में शिवपाल का हो सकता अबतक का सबसे बड़ा फायदा!


यूपी के सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी माने जाने वाली पार्टी सपा में चाचा भतीजे के बीच के तनातनी के बाद पिता और बेटे के बीच की खाई और भी गहरी हो गई है. जैसा की आप देख रहे हैं कि सपा में अब मुख्यमंत्री अखिलेश और पार्टी मुखिया अखिलेश के बीच भी अलगाव बढ़ने लगा है इसका एक उदहारण के सपा पार्टी मुख्यालय पर भी देखा गया. जहां मुलायम ने अखिलेश के अगले मुख्यमंत्री बनने वाले बयान को खारिज करते हुए कहा था कि सपा का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा यह विधानमंडल तय करेगा. मुलायम के इस बयान पर मुख्यमंत्री अखिलेश के सपा से अगला मुख्यमंत्री बनने पर संदेह जैसी स्थिति पैदा हो गई है.


मुलायम ने मुख्यमंत्री को लेकर कहा था “सीएम का चुनाव विधानमंडल दल के नेता तय करेंगे. कौन कहां और कैसे बैठेगा यह पार्टी तय करेगी. शिवपाल यूपी के प्रभारी और सब कुछ हैं.” जबकि लायम ने अखिलेश के बचपन खुद ही नाम रखने वाले बयान पर कहा “कई लोग अपना नाम खुद ही रखते हैं. धर्मेन्द्र ने भी अपना नाम खुद रखा था. बचपन में जब उनकी मां बीमार रहती थीं तो मेरी बहन ने ही उनका पालन पोषण किया. अखिलेश अपनी बुआ को बहुत मानते हैं.”

आपको बता दें कि इससे पहले मुलायम ने अखिलेश को बिना बताए प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दीया था और अपने भाई शिवपाल को यह जिम्मेदारी दे दी थी. हालांकि मुलायम की इस फैसले के बाद अखिलेश शिवपाल से कई मंत्रालय छीन लिए. लेकिन अपने पिता के कहने पर उन्होंने अपने चाचा को लगभग सारे मंत्रालय लौटा दिए.

जबकि उनके कहने पर ही अखिलेश ने खनन मामले में आरोपी बर्खास्त मंत्री गायत्री प्रसाद को मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया. इसके अलावा मुलायम हमेशा से ही शिवपाल करीब रहे हैं. उन्हें वो पार्टी का जमीनी नेता मानते है. इससे पहले भी उन्होंने यह जिक्र किया था मैंने अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाकर भूल कर दी शिवपाल ने मुझे मान किया था.

इस तरह आप यह देख रहे हैं कि सपा मुखिया हमेशा शिवपाल के पक्ष में ज्यादा खड़े हो रहे हैं. जबकि उनकी यह बात की विधानमंडल ही मुख्यमंत्री को चुनेगा. इसके कई मायने निकाले जा रहें हैं. अगर मौजूदा समय को देखे तो शिवपाल के समर्थन में कई विधायक है और यह भी उम्मीद की जा रही हैं कि सपा मुखिया मुलायम को समर्थन देने वाले सारे विधायक भी शिवपाल के साथ ही खड़े हो सकते हैं.

ऐसे में अखिलेश के समर्थन में काफी कम विधायक खड़े हो सकते हैं. इस स्थिति को यह कहा जा सकता हैं कि पिता और बेटे के लड़ाई में शिवपाल का बड़ा फायदा हो सकता हैं और ये भी हो सकता है कि अगले चुनाव के में जीत के बाद विधानमंडल शिवपाल को ही अपना नेता चुन ले. हालांकि इस बात को पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता हैं. इसका केवल अनुमान लगाया जा सकता हैं.


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